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पर्यावरण, प्रकृति व प्रांण बचाना है तो अपना धर्म के साथ पर्यावरण धर्म को अपनाने की है जरूरत: कौशल

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पर्यावरण, प्रकृति व प्रांण बचाना है तो अपना धर्म के साथ पर्यावरण धर्म को अपनाने की है जरूरत: कौशल

विश्व पर्यावरण दिवस पर पर्यावरणविद ने वन वृक्षों पर राखियां  बांधते हुए कहा कि

पर्यावरण, प्रकृति व प्रांण बचाना है तो अपना धर्म के साथ पर्यावरण धर्म को अपनाने की है जरूरत: कौशल

बेकाबू गर्मी व जल संकट को दूर करने के लिए किसानों को करना होगा वृक्ष खेती : कौशल

फ़ोटो- वनों पर राखी बांधते वन राखी मूवमेंट के प्रणेता कौशल व पर्यावरण प्रेमी

छतरपुर पलामू झारखंड

छतरपुर अनुमंडल के केरकी कला के वनों में विश्व पर्यावरण दिवस के 52 वां और वन राखी मूवमेंट के 48 वां स्थापना दिवस पर प्रकृति, पर्यावरण और प्राण बचाने के लिए वनों में प्रभात फेरी निकाला गया। जिसमें आसपास के करीब 20 गांव के हजारों पर्यावरण प्रेमी लोग शामिल थे। विश्वव्यापी पर्यावरण संरक्षण अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह पर्यावरण धर्मगुरु व वन राखी मूवमेंट के प्रणेता कौशल किशोर जायसवाल बतौर मुख्यातिथि ने पर्यावरण धर्म के प्रार्थना के साथ पक्षियों के भोजन के लिए बरगद का पौधा लगाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया ।
पर्यावरणविद कौशल ने कार्यक्रम में शामिल लोगों को पर्यावरण धर्म के आठ मूल ज्ञान मंत्रों की शपथ दिलाते हुए कहा कि बेकाबू गर्मी और जल संकट से निजात पाने के लिए किसानों को वृक्ष खेती करने की जरूरत है । क्योंकि वृक्ष खेती को आकाल सुखाड़ का भय नहीं है। वृक्ष की खेती किसानों के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह काम आता है। इतना ही नहीं इससे जल संकट और ऑक्सीजन संकट भी उतपन्न नहीं होगी। उन्होंने कहा कि जहां-जहां कटते हैं वन वहां वहां हुआ है बिनाश, कोरोना काल इसका गवाह है। दिल्ली और महाराष्ट्र में अर्थ के लिए हो रहे अनर्थ का ही परिणाम है कि वहां बेकाबू गर्मी, जल संकट और प्रदूषण बेतहासा बढ़ा है। जिसका खामियाजा लोग भुगत रहे हैं।

वन राखी मूवमेंट के अगुआ  कौशल किशोर ने वन बचाने वाले सभी 500 पर्यावरण प्रेमी महिलाओं एवं पुरुष को शॉल ओढ़ा कर मिठाइयां, के साथ फलदार पौधा देकर उन्हें सम्मानित किया ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ताओं में डाली के उप मुखिया अफजाल अंसारी, छतरपुर पूर्वी से जिला पार्षद प्रतिनिधि सुभाष गुप्ता, डाली पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि,सुचित कुमार जायसवाल, चराई मुखिया रविंद्र राम, छतरपुर के पूर्व प्रमुख जगनारायण सिंह, हरिराम, रामजी सिंह,कपिल देव सिंह, राजेश्वर विश्वकर्मा, कृष्ण प्रसाद,सत्येंद्र सिंह,बनारसी देवी बलराम सिंह ने वन राखी मूवमेंट से होने वाले वनों की सुरक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा पर अपना विचार व्यक्त किया। और कहा कि आज 40 वर्षों से केरकी कला में श्री कौशल के द्वारा चलाया गया वनरखी मूवमेंट के कारण क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता आयी है यही कारण है कि इस क्षेत्र के हजारों एकड़ उजड़े वन आज सघन वन का रूप ले लिया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष नागेश्वर सिंह ने की। जबकि संचालन गायक शिवनाथ सुरीला ने किया। मौके पर वन राखी मूवमेंट के सदस्यों में सुमित जायसवाल,मनोज गुप्ता , श्याम बिहारी सिंह, श्याम देव विश्वकर्मा, जयराम विश्वकर्मा, विश्वनाथ भुईयां,उपेंद्र सिंह, बिरजू सिंह, बुधन सिंह, लीला सिंह, अवध सिंह, हरिहर सिंह, मिथिलेश सिंह,पनपत्ति देवी, संतोष गुप्ता, अनूप ठाकुर, रवि प्रसाद,लक्ष्मण भुईया , भदई भुईयां, पन्ना देवी, गीता देवी ,लीलावती देवी अलावे पर्यावरणविद द्वारा कन्या पूजन में शामिल अनिता कुमारी, सुषमा कुमारी, निशा कुमारी, आरती कुमारी, सोनी कुमारी आदि उपस्थित थी।

पर्यावरण दिवस पर विशेष

(बॉक्स के लिये)

क्यों मनाते है पर्यावरण दिवस
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प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और मानव जीवनशैली के लिए इनके गलत उपयोग से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। दूषित पर्यावरण उन घटकों को प्रभावित करता है, जो जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। ऐसे में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने, प्रकृति और पर्यावरण का महत्व समझाने के उद्देश्य से हर साल विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं।

क्या है पर्यावरण दिवस 2024 का थीम
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प्रति वर्ष पर्यावरण दिवस का एक खास थीम होती है।
पिछले साल यानी विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की थीम “Solutions to Plastic Pollution” थी। यह थीम प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान पर आधारित है। इस साल विश्व पर्यावरण दिवस 2024 की थीम “Land Restoration, Desertification And Drought Resilience” है। इस थीम का फोकस ‘हमारी भूमि’ नारे के तहत भूमि बहाली, मरुस्थलीकरण और सूखे पर केंद्रित है।

पर्यावरण दिवस का इतिहास
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पर्यावरण दिवस मनाने की नींव 1972 में पड़ी, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहला पर्यावरण दिवस मनाया है और हर साल इस दिन को मनाने का एलान किया। 

5 जून को ही क्यों मनाते हैं पर्यावरण दिवस 
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दरअसल, पहला पर्यावरण सम्मेलन 5 जून 1972 को मनाया गया था, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया था। स्वीडन की राजधानी स्टाॅकहोम में सम्मेलन हुआ। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव पर्यावरण पर स्टाॅकहोम सम्मेलन के पहले दिन को चिन्हित करते हुए 5 जून को पर्यावरण दिवस के तौर पर नामित कर लिया।

पर्यावरण दिवस का महत्व
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भारत समेत पूरे विश्व में प्रदूषण तेजी से फैल रहा है। बढ़ते प्रदूषण के कारण प्रकृति खतरे में हैं। प्रकृति जीवन जीने के लिए किसी भी जीव को हर जरूरी चीज उपलब्ध कराती है। ऐसे में अगर प्रकृति प्रभावित होगी तो जीवन प्रभावित होगा। प्रकृति को प्रदूषण से बचाने के उद्देश्य से पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत हुई। 

इस दिन लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाता है और प्रकृति को प्रदूषित होने से बचाने के लिए प्रेरित किया जाता है। 

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