श्री कौशल किशोर ने बताया कि 1966 के अकाल में पलामू की हालत बहुत खराब थी, लोग भूखे मर रहे थे। तब उनकी उम्र महज 13 साल थी। उन्होंने लोगों से सुना कि जंगलों की कटाई के कारण बारिश नहीं हो रही है। तभी से पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लिया और 1967 में ‘जंगल बचाओ-जंगल लगाओ ‘अभियान शुरू किया। वह सुंदर लाल बहुगुणा, पानूरंग हेगड़े, इंद्रजीत कौर, धूम सिंह नेगी जैसे पर्यावरणविदों के साथ काम कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 56 वर्षों से उनका यह अभियान निरंतर चल रहा है और अब एक परंपरा का रूप ले चुका है। इस अभियान के अंतर्गत अब तक 50 लाख से अधिक पौधों का निःशुल्क वितरण और पौधारोपण करा चुके हैं। उनका लक्ष्य एक करोड़ पौधे लगाने का है। वनराखी मूवमेंट के अंतर्गत 15 लाख से ज्यादा पेड़ों को राखी बांध चुके हैं। वह साल में चार बार 21 मार्च (विश्व वानिकी दिवस), 22 अप्रैल (पृथ्वी दिवस), 5 जून (पर्यावरण दिवस) और सावन पूर्णिमा पर पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधते हैं।
श्री कौशल किशोर जायसवाल सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि नेपाल, भूटान, श्रीलंका समेत दस देशों में भी पर्यावरण धर्म को लेकर अभियान चला चुके हैं। पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें देश-विदेश में 54 विभिन्न प्रतिष्ठित अवार्ड प्रदान किए जा चुके हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने उन्हें प्राइड ऑफ झारखंड अवार्ड प्रदान किया था, तो सूबे के प्रमुख मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी तथा तत्कालीन केंद्रीय राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने उन्हें ‘झारखंड गौरव’ अवार्ड से सम्मानित किया था। पर्यावरण धर्मगुरु श्री कौशल किशोर जायसवा ने अपने जीवन में वन राखी मूवमेंट का प्रचार जारी रखते हुए एक करोड़ पौधा लगाने का लक्ष्य रखा है। इस कार्य में उनकी धर्मपत्नी व डाली पंचायत की मुखाय पूनम जायसवाल, व्यवसायी पुत्र अरुण कुमार जायसवाल, जिला पंचायत सदस्य पुत्र अमित कुमार जायसवाल, पुत्री ज्योति जायसवाल और दोनों बहुओं कोमल जायसवाल व शिल्पा जायसवाल का साथ मिलता है।
यही कारण है कि यूपीएससी के परीक्षा में एवं कौन बनेगा करोड़पति जैसे चर्चित शो में भी इनसे जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं
विश्व के 15 देशों और भारत के 22 राज्यों के 92 जिलों में अबतक 42 लाख पौधे किया निःशुल्क वितरण सह रोपण का कार्य किया गया है।
1967 में ‘जंगल बचाओ-जंगल लगाओ ‘अभियान शुरू किया। वह सुंदर लाल बहुगुणा, पानूरंग हेगड़े, इंद्रजीत कौर, धूम सिंह नेगी जैसे पर्यावरणविदों के साथ काम कर चुके हैं।
पर्यावरण और प्रकृति के प्रति 56 वर्षों से देशभर के लोगों को जगाने वाले पर्यावरणविद अब पर्यावरण धर्मगुरु से हुए विख्यात हो चुके हैं।
पर्यावरणविद कौशल किशोर ने बड़े कम उम्र से ही पौधारोपण का शुभारंभ वर्ष 1967 में अपनी जन्म भूमि झारखंड राज्य के पलामू जिले के छतरपुर प्रखंड के डाली बाजार गांव से किया था। शुरुआती दौर में वे अपनी निजी भूमि (7.72 हेक्टेयर ) पर पौधरोपण किया था। वे बताते हैं कि वर्ष 1966 में जब सम्पूर्ण देश महा आकाल की चपेट में आया। तब उस समय लोगों के पास न तो खाने के अन्न थे और न ही पीने को पानी । उस स्थिति का आकलन करते हुए उनके पिता मोहनलाल खुर्जा मां पार्वती देवी जो पेशे से एक साधारण किसान थे, उन्होंंने ने कहा था कि यह भीषण समस्या लोगों के समक्ष वनों की कटाई के कारण ही उतपन्न हुई है। तब श्री कौशल ने अपने पिता व माता की बातों से प्रभावित होकर दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति के साथ जंगल बचाओ ,जंगल लगाओ अभियान की शुरुआत की। ताकि दुबारा जल संकट और अन्य संकट लोगों को यह दुर्दिन देखने को नहीं मिले। जब उन्होंने पौधा लगाने की शुरुआत की तब किसान अपनी भूमि पर पौधा लगाने से डरते थे । उन्हें भय था कि उनकी निजी ज़मीन पर लगे जंगल कहीं सरकार न ले ले। फिर भी कौशल ने अपने इस अभियान को बंद नहीं होने दिया। एक छोटी सी गांव से निकला अभियान आज दुनिया को पर्यावरण की रक्षा और पौधारोपण करने पर विवश कर दिया।
वर्तमान हालात को देखते हुए वन राखी मूवमेंट के अगुआ कौशल का मानना है कि अभी आजादी की दूसरी लड़ाई जितना बाकी है प्रदूषण के खिलाफ हम पौधा रूपी मिसाइल को चलाकर नहीं भूमि पर लगाकर जीतेंगे जिस रफ्तार से धरती का तापमान बढ़ रही है और प्रदूषण की आग लगी है वह आग पानी से नहीं शुद्ध हवा से बुझेगी शुद्ध हवा बनाने का कोई उद्योग फैक्ट्री नहीं हैं बल्कि पेड़ पौधे हैं गांव में वृक्ष खेती और शहर में आकाश बाग से हम प्रदूषण की आग बुझा सकेंगे यदि लोग पर्यावरण धर्म को नहीं अपनाए तो वैसी हालात में 84 लाख योनि जीवों पर जल संकट के साथ-साथ ऑक्सीजन संकट भी होना तय है। उस भयावह स्थिति से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण धर्म के आठ ज्ञान मूल मंत्रों को अपनाना होगा।
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